नई दिल्ली । जम्मू-कश्मीर में चल रही बाबा अमरनाथ यात्रा के दौरान हुए हादसे के बाद खुलासा हुआ कि पिछले साल भी यहीं हादसा हुआ उसके बाद भी प्रसासन ने सबक नहीं लिया। हाल ही में आई प्राकृति आपदा ने भारी तबाही मचाई है। अमरनाथ में बादल फटने से कई टैंट पानी में बह गए। प्राकृतिक आपदा में 16 लोगों की मौत हो गई, जबकि 40 लोग लापता है। सवाल ये है कि पिछले साल जुलाई में पवित्र गुफा के पास इसी जगह बाढ़ आई थी, जहां इस बार तबाही हुई है, लेकिन उसी स्थान पर कैंप क्यों लगाए गए, वहीं सारे अरेंजमेंट क्यों किए गए। दरअसल, पिछले साल 28 जुलाई को अमरनाथ में इसी जगह पर बाढ़ आई थी, लेकिन कोविड के कारण यात्रा बंद होने की वजह से किसी भी तरह के जानमाल का नुकसान नहीं हुआ था। भारी बारिश ने इस क्षेत्र में सुरक्षाकर्मियों द्वारा लगाए गए कैंपों को उजाड़ दिया था, लेकिन गनीमत ये रही कि किसी को चोट नहीं आई।
एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल तीर्थयात्रियों के लिए टेंट फ्लड चैनल पर लगाए गए थे। इस इलाके को सूखी नदी के तल के रूप में जाना जाता है। इतना ही नहीं, यहां से लंगर चलाने की अनुमति भी दी गई थी। एक अधिकारी ने बताया कि इन दिनों बारिश होना और बाढ़ आना सामान्य बात है, लेकिन ये अच्छी तरह से मालूम था कि यहां बाढ़ का खतरा है, इसके बाद भी अगर अनुमति दी गई तो प्लानिंग का अभाव था।
जम्मू-कश्मीर मौसम विज्ञान केंद्र की निदेशक सोनम लोटस ने बताया कि पिछले साल 28 जुलाई को अमरनाथ में कितनी बारिश हुई थी, ये बता पाना तो मुमकिन नहीं है, क्योंकि पिछले साल कोविड की वजह से यात्रा बंद थी। इस वजह से यहां कोई उपकरण भी नहीं लगाया गया था। रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल बाढ़ के बाद राजभवन ने एक बयान में कहा था कि "श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड, पुलिस और सेना की एक संयुक्त टीम ने तेजी से कार्रवाई करते हुए नाले के पास मौजूद सभी कर्मचारियों को निकाला। मानव जीवन या संपत्ति के नुकसान की सूचना नहीं है। लेकिन पवित्र गुफा मंदिर सुरक्षित है। गृह मंत्री अमित शाह ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से भी इस संबंध में बात की। जबकि इस साल श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड ने पानी की धारा रोकने के लिए दो फीट ऊंची पत्थर की दीवार बनाई थी, लेकिन बाढ़ ने कुछ ही सेकंड में इसे ध्वस्त कर दिया और पानी तंबुओं में समा गया था। एक आधिकारिक सूत्र ने कहा कि पिछले साल आई बाढ़ और 2015 की बाढ़ पर सभी आधिकारिक बैठकों में चर्चा की गई थी। तटबंध बनाने जैसे एहतियाती कदम उठाने का फैसला किया गया था। लेकिन पिछले इस बार के हालात बहुत अलग थे, बाढ़ ने पूरी योजना की धज्जियां उड़ा दीं।