भुवनेश्वर । ओडिशा के बारासोल इलाके में हुए ट्रेन हादसे में मरने वालों के शव बुरी तरह क्षत-‎‎विक्षत हो गए हैं। ऐसे में उनकी पहचान बड़ी चुनौती बन गई है। सरकार ने अब डीएनए टेस्ट कराने के बाद प‎रिजनों को शव सौंपने का ‎निर्णय ‎लिया है। अब तक हादसे में मरने वालों की संख्या 294 हो चुकी है। ‎डिब्बों से ‎निकालकर शवों को पास के एक स्कूल में रखा गया है, जहां प‎रिजनों का तांता लगा हुआ है। यहां पर क्लासरूम और स्कूल के हॉल में शवों का ढेर है। उनकी शिनाख्त के लिए लोगों की लंबी कतार है। कई शव टुकड़ों में हैं। तो कुछ बिजली के झटकों के कारण बुरी तरह जले हुए हैं। ऐसे में इनकी पहचान कर पाना बड़ी चुनौती है। शवों की पहचान के लिए जमा हुए रिश्तेदारों का रो-रोकर बुरा हाल है। मुर्दाघर बन चुके स्कूल में जमा हुए लोगों में कई पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से भी हैं। बताया जा रहा है कि शवों की शिनाख्त में लंबा वक्त लग सकता है क्योंकि ओडिशा सरकार ने शवों की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट का भी निर्णय लिया है।
मी‎डिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार रात से चले रेस्क्यू ऑपरेशन में शवों को घटनास्थल के पास एक स्कूल में रखा गया है। बचाव अभियान समाप्त होने के साथ अब ध्यान मृतकों की शिनाख्त पर है। स्कूल को टेंपरेरी मुर्दाघर बनाने के पीछे की वजह बताते हुए अधिकारियों ने कहा कि यह दुर्घटनास्थल से काफी करीब और इसके क्लासरूम और हॉल काफी खुले और विशाल हैं, इसलिए इनका चयन किया गया। महिला एवं बाल कल्याण विभाग के निदेशक अरविंद अग्रवाल ने कहा ‎कि कम से कम 163 शव यहां लाए गए, जिनमें से अब तक करीब 30 की पहचान उनके रिश्तेदारों ने कर ली है। मौके पर तैनात डीएसपी रणजीत नायक ने कहा ‎कि यह एक आपातकालीन स्थिति है। लाशें आ रही हैं जबकि परिजन उनकी शिनाख्त के लिए लाइन पर लगे हैं। लेकिन कई शवों की शिनाख्त नहीं हो पाई है। हम रिश्तेदारों को सावधानी से संभाल रहे हैं।
वहीं स्कूल के अंदर नगर निगम के कर्मचारियों समेत करीब 100 लोग इस समय काम में जुटे हुए हैं। बासुदेवपुर से आए नगरपालिका कार्यकर्ता राजेंद्र ने कहा ‎कि हमारा बैच शनिवार दोपहर में आया था। क्षत-विक्षत शवों को उठाना कठिन काम है, लेकिन रिश्तेदारों का दर्द देखना और भी कठिन है। शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो गए हैं और कुछ बिजली के झटके के कारण जले हुए प्रतीत होते हैं। इसलिए उन्हें पहचानना मुश्किल है। स्कूल में शवों की शिनाख्त के लिए एकत्र हुए परिवारों में से कई पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से थे। अधिकारियों के अनुसार, एक बार जब रिश्तेदार शव की पहचान कर लेते हैं, तो निवास प्रमाण पत्र और टिकट का प्रमाण देना होता है। चिन्हित व्यक्तियों के नाम भी आरक्षण चार्ट से मिलान किए जाते हैं। इसके बाद ही शव परिजनों को सौंपे जाते हैं और मुआवजे की प्रक्रिया शुरू होती है। 
महेश/ ईएमएस 04 जून 2023