नई दिल्ली । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चीफ मोहन भागवत  के रविवार को मुंबई में दिए गए एक बयान पर विवाद भड़कने के बाद आरएसएस ने अब इस पर अपनी सफाई दी है। भागवत ने कहा था कि जाति व्यवस्था ईश्वर ने नहीं बनाई है, बल्कि ये ‘पंडितों’ द्वारा बनाई गई है। इस पर संघ ने सोमवार को साफ किया कि भागवत ने जिस ‘पंडित’ शब्द का उपयोग किया था, उसका मतलब ‘बुद्धिजीवियों’ से है, न कि ब्राह्मणों से। आरएसएस के प्रचार प्रभारी सुनील आंबेकर ने बताया कि सरसंघचालक मराठी में बोल रहे थे। मराठी में पंडित का अर्थ बुद्धिजीवी होता है। उनके बयान को सही परिप्रेक्ष्य में लिया जाना चाहिए।
मीडिया से आरएसएस के प्रचार प्रभारी सुनील आंबेकर ने कहा कि सरसंघचालक हमेशा सामाजिक समरसता की बात करते हैं। वह कह रहे थे कि लोग शास्त्रों से कुछ भी व्याख्या कर सकते हैं, वह सब सही नहीं हो सकता है। वो संत रविदास के अनुभव की बात कर रहे थे। कोई भी इसे गलत संदर्भ में न ले और सामाजिक समरसता को ठेस नहीं पहुंचाए। आरएसएस ने हमेशा छूआछूत के खिलाफ बात की है और सभी सामाजिक विभाजनों का विरोध किया है। ये पूरा विवाद ऐसे समय पर सामने आया, जब श्रीरामचरितमानस की एक चौपाई को लेकर राजनीतिक बयानबाजी जोरों पर है।
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट करके कहा कि आप ये तो साफ कर रहे हैं कि भगवान के सामने क्या हकीकत है। कृपया ये भी साफ करें कि इंसान के सामने जाति और वर्ण की वास्तविकता क्या है, जबकि राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने भागवत के बयान की ईमानदारी पर संदेह जताया था। झा ने तो इसे केंद्र सरकार के जातिगत जनगणना की मांग को खारिज करने के फैसले से जोड़ दिया। झा ने कहा कि मोहन भागवत का बयान केवल एक बयान है। यह आपकी कार्य संस्कृति में नहीं देखा जाता है।